
पटना, 10 दिसंबर (भाषा) बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समक्ष राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की अपनी पुरानी मांग एक बार फिर दोहराया। शाह की अध्यक्षता में यहां पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की 26 वीं बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि राज्य में सर्वसम्मति से कराए गए जाति आधारित गणना के आंकड़ों के आधार पर समाज के सभी कमजोर वर्गों के सामाजिक उत्थान के लिए आरक्षण में इनकी भागीदारी बढ़ाने का निर्णय लिया गया था जिसमें सभी भाजपा समेत विभिन्न पार्टियों की सहमति थी। उन्होंने कहा, “राज्य में आरक्षण की सीमा 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया है। इसके लिए कानून पारित हो गया है। सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए पहले से ही 10 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध है। सभी को मिलाकर कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो गया है। हमारी सरकार ने केन्द्र सरकार से आरक्षण के नये कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने के लिए अनुरोध किया है। आशा है केन्द्र सरकार इसे शीघ्र ही संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करेगी।”
मुख्यमंत्री ने कहा, “जाति आधारित गणना में लोगों की आर्थिक स्थिति की जानकारी ली गयी है। सभी जातियों में गरीब परिवार मिले हैं, जिनमें 25.09 प्रतिशत सामान्य वर्ग के, 33.16 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग के, 33.58 प्रतिशत अति पिछड़ा वर्ग के 42.93 प्रतिशत अनुसूचित जाति तथा 42.70 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग गरीब हैं। सभी वर्गों में गरीब परिवारों की कुल संख्या 94 लाख है।”
उन्होंने कहा कि गरीब परिवारों को आगे बढ़ाने के लिए उसके एक सदस्य को रोजगार के लिए दो लाख रुपये तक की सहायता की योजना बनायी गयी है। उनका कहना था कि जिन परिवारों के पास आवास घर नहीं है, उन्हें जमीन खरीदने की राशि को 60 हजार से एक लाख रुपये कर दिया है तथा मकान बनाने के लिए एक लाख 20 हजार रुपये दिये जायेंगे।
उन्होंने कहा, ” 2018 से “सतत जीविकोपार्जन योजना’ के तहत अत्यंत निर्धन परिवार को रोजगार हेतु वित्तीय सहायता दी जा रही है। अब एक लाख रुपये की सहायता राशि को बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दिया गया है। इन सब कार्यों में कुल मिलाकर दो लाख 50 हजार करोड़ रुपये लगेंगे, जिसे अगले पांच सालों में पूरा कर लिया जायेगा। यदि केन्द्र सरकार द्वारा बिहार को’ ‘विशेष राज्य का दर्जा मिल जाय तो हम इस काम को बहुत कम समय में ही पूरा कर लेंगे। हम वर्ष 2010 से ही बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा की माँग कर रहे हैं।”
नीतीश कुमार सरकार ने पिछले महीने राज्य सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में वंचित जातियों के लिए आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के लिए गजट अधिसूचना जारी की थी। दोनों कानूनों में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए कोटा 16 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए एक से दो प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ी जाति (ईबीसी) के लिए 18 से 25 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 15 से 18 प्रतिशत करने के लिए उच्चतम न्यायालय की 50 प्रतिशत की सीमा से परे आरक्षण की सीमा को 50 से 65 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए पहले से मौजूद 10 प्रतिशत कोटा के साथ नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की कुल सीमा अब राज्य में 75 प्रतिशत होगी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, बैठक में ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड के वरिष्ठ मंत्रियों ने भी भाग लिया। बैठक में अंतर राज्य परिषद सचिवालय के सचिव, सदस्य राज्यों के मुख्य सचिव, राज्य सरकारों और केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। बिहार में किए गए जाति-आधारित सर्वेक्षण के बारे में गृह मंत्री ने कहा कि जब उनकी पार्टी राज्य में सत्ता में थी, तो उन्होंने जाति-आधारित सर्वेक्षण का समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने भी विधेयक को मंजूरी दे दी है।
गृह मंत्री ने कहा कि जाति आधारित सर्वेक्षण को लेकर कुछ मुद्दे हैं, जिन्हें उन्हें उम्मीद है कि राज्य सरकार समाधान करेगी। शाह ने कहा कि केंद्र सरकार की कभी भी जाति आधारित सर्वेक्षण में बाधा उत्पन्न करने की कोई मंशा नहीं थी।
करीब तीन घंटे तक चली बैठक को संबोधित करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि क्षेत्रीय परिषद की बैठक में 1157 मुद्दों का समाधान किया गया है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय परिषद की बैठकों में राजनीतिक मामलों पर मतभेद से बचना चाहिए और उदार तरीके से मामलों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।
शाह ने कहा कि परिषद की बैठक के एजेंडे में पोषण अभियान के माध्यम से बच्चों में कुपोषण को खत्म करना, स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर को कम करना, त्वरित जांच के लिए विशेष त्वरित अदालतों (एफटीएससी) का संचालन और महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बलात्कार के मामलों का त्वरित निपटान जैसे राष्ट्रीय महत्व के कई मुद्दे शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक गांव के पांच किमी के भीतर बैंकों/इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक शाखाओं की सुविधा, देश में दो लाख नई प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) का गठन और देश में सभी मौजूदा पैक्स को मजबूत करना शामिल थे।
उन्होंने कहा कि इन मुद्दों की हर तीन महीने में मुख्यमंत्री, मंत्री और मुख्य सचिव के स्तर पर समीक्षा की जानी चाहिए।
शाह ने कहा कि पूर्वी क्षेत्र देश की सांस्कृतिक राजधानी होने के साथ ही प्राचीन काल से आज तक अनेक प्रमुख शिक्षण संस्थानों का केन्द्र रहा है।उन्होंने कहा कि पूर्वी क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में ढेर सारे प्रयोग हुए और प्रतियोगी परीक्षाओं में भी पूर्वी क्षेत्र के बच्चे ही सबसे ज्यादा सफल होते हैं। शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने सहकारी संघवाद की भावना को मजबूत करने का जो ‘विजन’ दिया है, पिछले नौ साल में उसे उन्होंने चरितार्थ भी किया है।